Monday, December 1, 2008

शायद (Perhaps-Part V)

शायद लिख लिख कर,
मैं यथार्थ से दूर भाग रहा था शायद।
शायद में मेरी ख्वाबों का,
बोहत कुछ झलक रहा था शायद।

शायद क्या है,
मैं यह ढूँढने की कोशिस कर रहा था शायद।
शायद का मेरी जिंदगी से ताल्लुक,
समझने की कोसिस कर रहा था शायद।

सायद की नायीका,
मेरी हकीकते जिंदगी में आ पाती शायद।
शायद की बारात,
मेरी हकीकते जिंदगी को फूलों से भर पाती शायद।

शायद की कहानी,
मेरी हकीकत को कही न कही छूती है शायद।
सायद की नायीका,
मेरे अंतरतम में एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है शायद।


(C) All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय

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