Monday, December 1, 2008

शायद (Perhaps-Part IV)

फिजा में बहार थी,
बसंत का आगमन था सायद।
भवरे गुनगुना रहे थे,
मनहर राग छेड़ रहे थे सायद।

मेरे दिल की धड़कन अनियंत्रित हुई,
मैं कोई अनहोनी से घबरा रहा था शायद।
कोई उसे मेरी जिंदगी से ले जायेगा,
इसका डर सता रहा था शायद।

वह जिसकी रमा होगी वोह शख्स,
दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान होगा शायद
और मेरा उसको कुछ कह पाना,
मेरे अमर प्रेम की निसानी होगी शायद
(The above paragraph is The most liked part of The शायद series)

तभी मुझे लगा मुझसे कोई बेवफाई कर रहा है,
यह मेरा ख़ुद पर शक करना था शायद।
मेरे दिल में एक टीस सी हुई,
यह मेरे दिल का रुकना था शायद।

' रमा ' - wife
' टीस ' - soft sound



(C) All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय

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