Friday, December 19, 2008

कुछ कही - कुछ अनकही

हर रात जब मैं सपनो की दुनिया में होता हूँ,
ऐसा लगता है, तुम्हारे होठों की नमी मेरे होठों को छेड़ रही है |
तुम मेरे पास होती हो तो तुम्हारे होंठ कांपने लगते है,
ऐसा लगता है, जैसे एक अनकही सी हवा मेरे कानों को छु रही है|

तुम सांस लेती हो तो तुम्हारी हर सांस,
मेरे दिल को धडकनों से भर देती है|
तुम मुझे चोरी-चोरी देखकर चुपके-चुपके मुस्कुराती हो तो,
तुम्हारी मृदु मुस्कान मेरे अंतरतम को गहराई से छु जाती है|

तुम जिस रास्ते से होकर हर रोज चलती हो,
उस रास्ते से होकर मेरी आहट तुम्हारे पास आती है|
तुम जिस रास्ते पे चलकर मुझसे दूर जाती हो,
उस रास्ते से होकर तुम्हारी खुशबू मेरे पास आती है|

तुम्हारी मासूम चेहरे पर गहरी काली पलकें झपकती हैं तो,
मेरे दिल के हर स्पंदन में तुम्हारी मासूमियत कैद हो जाती है|
तुम्हारी काली जुल्फों में जब मेरी निगाहें गूम हो जाती है तो,
मेरी धड़कन, मेरी निगाहों का पता पूछने के लिए, तुम्हारे धड़कन के पास चली जाती है|

All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय

No comments: