Monday, December 1, 2008

शायद (Perhaps-Part III)

मैं उसे ख्वाब में क्यों देखता हूँ?
उसके बारे में ही सोचते होगे शायद।
हकीकत में उससे मुलाकात होती नही क्यों?
यह तुम्हारी ख्वाबों का ही नतीजा है शायद।

वोह हकीकत में सामने आएगी तो?
उससे कुछ कहोगे शायद।
पर हकीकत में उससे नजरे मिलेंगी तो?
उससे कुछ भी कह नही पावोगे शायद।

मुझमे कशमकश क्यों हो रही है?
वोह तुम्हे बहुत चाहती है शायद।
तो कुछ कहने से डर क्यों लगता है?
तुम उसके रूठने से डरते हो शायद।

इतनी देर मैंने दिल से सवाल किया,
उसके हर जवाब में था शायद।
ध्यान से सोचने पर लगा,
हर जवाब वास्तविकता के बहुत करीब था शायद।


(C) All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय

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