आज सुबह मैं थोडी जल्दी उठा,
सूरज की पहली किरण इसकी गवाही दे रही थी शायद।
समझ में नही आया आँख जल्दी खुली क्यों?
यह तो रात की कहानी का अगला पन्ना है शायद.
तुम्हारी खूबसूरती की क्या तारीफ़ करू,
चाँद भी तुमसे रोशनी चुराती है शायद।
तुम्हारे चेहरे की सी रौनक चाँद में कहाँ,
चाँद के चेहरे में तो दाग है शायद।
आज तुम्हारे चेहरे में वो कशीश नही है,
तुम्हारा मन कुछ उदास है शायद।
पर तुम्हारी नज़रों में उतरकर मैंने जब हकीकत से पुछा,
तुम मुझे आजमाने की कोशीस कर रही थी शायद।
धुप और छाव से भी गहरा शम्भंद,
हममे पनप रहा है शायद।
लग रहा है ऐसा के मुझको तो,
तुम्हारी ही धडकनों में बसना है शायद।
(C) All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय
The Snake in the Pocket
5 years ago
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