रात का अन्तिम प्रहार था,
आंखों से नींद उड़ गयी थी शायद।
पलकें झपकने का नाम नही ले रही थी,
आंखों के आगे अँधेरा छाने का डर था शायद।
उठा बिस्तर से, खोला दरवाजा,
देखा रात अभी बाकी थी शायद।
चांदनी में ओस की बूंदें चमक रही थी,
लग रहा था ऐसा, मोतियों की बरसात हुई थी शायद।
दिल ने सोचा, रात की बेचैनी के कारन,
आँख खुली जल्दी शायद।
बेचैनी क्या थी,
उसकी मृदु मुस्कान की याद थी शायद।
अब आंखों का बंद होना नामुमकिन था,
उसकी मुस्कान का ही असर था शायद।
नसों पर जोड़ देने पर लगा,
ये मेरी दास्ताँ-ऐ-इश्क का असर था शायद।
(C) All Rights Reserved: रोशन उपाध्याय
The Snake in the Pocket
5 years ago
2 comments:
wow! that was something!
and hindi- after all these years!
loved it. maybe will plagiarise it and send to my girlfriend ;) he he
keep them coming.
Thanks!!
This was written way back.. around the end of 1999, i guess
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